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Stories, poetry and travelogue
बूढ़ी नानी पहाड़ की चोटी पर बैठती हैं। खूब सारे रंग बिरंगे ऊन के गोले लेकर। नानी खुद भी छोटा सा ऊन का गोला लगती हैं। बारिश के मौसम में स्वेटर, मफलर और मोज़े बुनना शुरू करती हैं जिससे सर्दियां आने तक हमारे लिए नए नए स्वेटर तैयार हो जाएँ!
बारिश होती है तो नानी को ज़ोर की गुदगुदी होती है। वो बड़ा ठहाका लगाकर हँसती हैं और एक ऊन का गोला पहाड़ की चोटी से लुढ़क जाता है। रोज़ बारिश होती है और रोज़ एक ऊन का गोला लुढ़क जाता है। नानी स्वेटर का जो रंग सोचती हैं वो बुन नहीं पाती हैं। नीला सोचती हैं पर वो लुढ़क जाता है तो लाल बुनती हैं, लाल सोचती हैं तो हरा बुनती हैं। कर कुछ नहीं सकतीं क्योंकि ना तो वो बारिश रोक पाती हैं ना हँसी रोक पाती हैं। बारिश को हँसी अच्छी लगती है और हँसी को बारिश।
लुढ़के हुए गोलों को बहुत मज़ा आता है, उनका रंग ऐसा कमाल का होता है कि जिससे भी वो टकराते हैं उस पर अपना रंग फैला देते हैं। लाल गोला किसी पेड़ से टकराकर उस पर लाल फूल उगा देता है। पीला गोला तितली से टकराकर उसे पीले पंख देता है। हरे गोले का ऊन अगर खुल जाय तो घास का मैदान उग आता है। ये सब तो चलो ठीक है कई बार जब गोले बदमाशी का मन बना लें तो उस दिन सब जादू सा लगता है। मैंने अपनी आसमानी पतंग उड़ायी और मान लो कि वो कट गयी। तुम्हारी छत पर आकर गिरी गुलाबी पतंग। हवा में तैरती हुई वो गुलाबी गोले से जो टकरा गयी थी!
तुम घर से काला छाता लेकर निकले, दोस्त के घर पहुंचे तो छाता रंग बिरंगा हो गया। कई रंगों के ऊन के गोले रास्ते में छाते से टकरा लिए और तुम्हें लगा कि बूँदें हैं।
बॉल कैच करानी हो तब तो और भी मज़ा है। पीली बॉल फेंकी तो कैच करने वाले के हाथ बॉल तो आयी नहीं गले में बैंगनी मफलर लटक गया। पीली बॉल रास्ते में टकराई ही नहीं, उसकी बैंगनी गोले से बदली भी हो गयी!
किसी दिन चाँद लाल गोले से टकरा जाए तो बस फिर! नीला और हरा तो वो फिर भी चला लेता है लेकिन लाल हो जाने पर शर्म के मारे घर से ही नहीं निकलता। बारिश से सब धुल जाता है और फिर नानी के ऊन के गोले सबकुछ रंग देते हैं। बारिश का मौसम यूँ ही थोड़ी इतना रंग बिरंगा होता है।
शाम होते सारे गोले सूरज के पास दौड़ लगाते हैं। सूरज उन्हें खूब सारे गरमा गरम पकौड़े खिलाता है। किसी शाम सूरज ढलते ढलते खूब सारे रंग देखो तो समझ जाना कि आज नानी ख़ूब हँसी हैं!