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Stories, poetry and travelogue
बाशु को रात को जागना बहुत अच्छा लगता था। पर दादी हमेशा उसे कहतीं कि रात को सोया करते हैं। वो रात को जागा रहता और दिन में सोया रहता। तब दादी कहतीं कि दिन में जागा करते हैं। ये बात वो सोये हुए बाशु को ही कहती रहतीं। रात में उसे चित्र बनाना बहुत पसंद था। खूब सारे चित्र बनाने के बाद वो कविताएँ पढ़ा करता और फिर कविताओं को अपने युकुलेले पर बजाता हुआ गाता। गाते गाते सड़क पर घूमने निकल जाता। ख़ाली सड़कें उसे ख़ाली आंगन सी लगतीं। सुबह घर लौटकर सो जाता।
दादी को सारे काम दिन में करने अच्छे लगते थे। वे पौधों को पानी देतीं, गली में क्रिकेट खेलते बच्चों की अंपायर बनतीं, शाम को पतंग उड़ातीं फिर अगले दिन की पतंग लेने के लिए बाज़ार जातीं।
नींद आने से ठीक पहले उनका मन करता कि वे बाशु को दिन में खिले रंग बिरंगे फूल दिखा सकें, उसे क्रिकेट के नियम समझा सकें और उसके साथ पतंगबाज़ी कर सकें।
एक रात बाशु ने खूब सारे चित्र बनाए। उसने नीले रंग की सड़क बनाई, चाँद, तारे, बादल, रात में होने वाली बारिश और ख़ाली पार्क। पर फिर भी उसे लगा कि कुछ कमी है। इस रात उसने वो चित्र वहीं छोड़ दिया। अगली रात जब वो जागा तो उसे एक चिट्ठी मिली।
प्रिय बाशु,
मुझे तुम्हारी एक मदद चाहिए। मैं शाम को जब भी पतंग लेने जाती हूँ तब सड़कों पर बहुत गाड़ियां और लोगों की भीड़ होती है। मुझे सड़क पर करने में बहुत मुश्क़िल आती है। क्या तुम शाम को थोड़ा जल्दी उठकर मेरे साथ पतंग लेने चला कर सकते हो?
तुम्हारी दादी
शाम को दादी छत से उतरीं तो देखा बाशु तैयार था! वे बाज़ार को निकल पड़े। भीड़ भरे रास्तों को बाशु ध्यान से देखता रहा। दोनों ने हाथ पकड़कर आसानी से सड़क पार कर ली। लौटते हुए बाशु ने दादी को कविताएँ सुनायीं।
उस रात बाशु के नीले में कई रंग शामिल हो गए। उसने गुब्बारेवाले का चित्र बनाया, अलग अलग चीजों पर पड़ती धूप का चित्र बनाया, घर लौटते पक्षियों के चित्र बनाए। इस तरह शाम का वक़्त दिन और रात के मिलने के साथ साथ दादी और बाशु के मिलने का भी वक़्त बन गया।
दादी इस बात से बहुत ख़ुश थीं इसलिए वे बाशु के साथ पतंग लेने शहर की सबसे दूर वाली दुकान पर जाया करतीं।